Friday, January 20, 2012

मैं पंछी

उडती फिरती पंछी
आजाद कितनी
मैं कैदी अपने मनका
खुद से हूँ बंधा
खुलेगी कभी कड़ियाँ
उड़ने मैं लगूंगा
अरमानों का पंख फैलाए
सदा यूँ न रहूँगा
मैं पंछी हूँ
मैं भी उड़ने लगूंगा