Sunday, September 26, 2010

अब दर्द नही रहा

कुछ तुने दिए थे
कुछ मेरे अपने थे
अब दर्द नही रहा

ज़ख्म वह भर गए
निशां भी मिट गए
तडपा था मैं कभी
अब दर्द नही रहा
कुछ तुने दिए थे
कुछ मेरे अपने थे
अब दर्द नही रहा

चाहता मैं भुलाना मगर
जेहेन मे बसा था मगर
सम्भाला ख़ुदको मैंने
दर्द मे अब तलक
अब दर्द नही रहा
कुछ तुने दिए थे
कुछ मेरे अपने थे
अब दर्द नही रहा


ना पुछूंगा ख़ुद से
ना पुछूंगा तुझ से
सवाले बेरुख़ी का
हालात से सिखा हूँ
मैं संभल चुका हूँ
अब दर्द नही रहा
कुछ तुने दिए थे
कुछ मेरे अपने थे
अब दर्द नही रहा

रेहने दो दोस्ती भी
यह रिश्ता है मेहंगा
दिल से जो कंगाल हो
दोस्ती ख़ाक निभाओगे?
तन्हा ही ख़ुश हूँ
अब दर्द नही रहा
कुछ तुने दिए थे
कुछ मेरे अपने थे
अब दर्द नही रहा



Wednesday, September 1, 2010

छायाँ

उज्यालोमा ,
छायाँ बन्छ शरीर
अनिश्चित आकार हुन्छ
विराट हुन्छ रूप पनी
तुक्ष रति हुन्छ फेरि
कालो छायाँ फैलिदै टाढा
भयावह देखिन्छ काया
डल्लो सानो, आकार घटी
हुन्छ टाउको खुट्टा मुनि
आफ्नो छायाँ कति प्यारो
सुम्सुम्याई हर घडी
भाग्न बाद्धय तुल्याई दिने
त्यों अन्धकार निर्मोही
विचरो ! विवश !
प्रकाश छैन लुक्न गयो
शरीर पनि तड्पिरह्यो
छ्टपट आत्मा भावबिह्वल
ज्योतिसंगै विलीन भयो
झुल्केला के ! अब फेरि ?
छायाँले साथ छोड़ी
अन्धकार मै रुन्गिरह्यो
अर्ध जिवीत शरीर बनी