देश विराना अब मेरा हुआ अपना पराया
मिट्टिका है इंसान मैं किस मिट्टिका
रेत का हूँ फिसलता हूँ सम्हालता हूँ
पानी का हूँ धार मेरा न कोई मझधार
कोरा कागज़ सा दिखता मगर कहानी गहरी
बाजारों मैं बिकती सस्ती सी है दिखती
किताब-ए जिंदगी सबकी एक सी है
मिट्टिका है इंसान मैं किस मिट्टिका
रेत का हूँ फिसलता हूँ सम्हालता हूँ
पानी का हूँ धार मेरा न कोई मझधार
कोरा कागज़ सा दिखता मगर कहानी गहरी
बाजारों मैं बिकती सस्ती सी है दिखती
किताब-ए जिंदगी सबकी एक सी है
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