बिदुर निति से : An extract from Bidur Niti
आक्रुश्यमानो नाक्रोशेन्मन्युरेव तितिक्ष्यत :/ आक्रोश्तारम निर्दहति सुकृतं चास्य विन्दति //
अर्थात: कोई विचारशील ब्यक्ति या जिसमे थोडी सी भी मनुष्यता हो , किसी परिस्थिति विशेष पर क्रोध में आकर पीडा पहुंचा दे या कोई हानि कर दे, तो उसे क्षमा कर देना चाहिए, किंतु येदी पीडा पहुंचानेवाला नीरा पशु हो और बार - बार पीडा और प्रताड़ना पहुंचा रहा हो; समझाने पर भी न माने, तो उसे अवश्य ही दण्डित करना चाहिए/इसके लिए बल न हो ,तो बुद्धि से उसका दमन करना चाहिए/अन्येथा ऐसा ब्यक्ति आपकी क्षमाशीलता को कायेरता समझेगा/वोह आपको बार - बार प्रताडित करेगा/इतना ही नही,आपकी क्षमाशीलता को वोह अपना पराक्रम समझेगा और अन्यों को प्रताडित करेगा/इसलिए क्षमा का दान भी पात्र देखकर ही करना चाहिए /
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